23 मार्च 2012
हेलसिंकी | पिछले तीन दशकों में परिवार से अलग रहने वाले लोगों की संख्या दुगुनी हो गई है, लेकिन ऐसे सभी लोगों में अवसाद का स्तर काफी अधिक है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। एक नवीनतम शोध से पता चला है कि सामाजिक और परिवार में रहने वाले लोगों की तुलना में अकेले रहने वाले लोगों में अवसाद का स्तर 80 प्रतिशत अधिक है।
एक स्वास्थ्य पत्रिका 'बीएमसी पब्लिक हेल्थ' की रपट के अनुसार फिनिश इंस्टीट्यूट ऑफ ओक्यूपेशनल हेल्थ की लोरा पुलकी राबैक और उनकी टीम ने सात वर्षों तक नौकरी पेशे से जुड़े 3,500 पुरुषों और महिलाओं का अध्ययन किया।
विश्वविद्यालय के बयान के अनुसार अध्ययनकर्ताओं ने सभी प्रतिभागियों के रहने की व्यवस्था की तुलना मनोवैज्ञानिक, सामाजिक-जनसांख्यिकीय और स्वास्थ्य जोखिम कारकों जैसे धूम्रपान, भारी मात्रा में मदिरा सेवन और कम शारीरिक गतिविधियों से की।
राबैक ने व्याख्या करते हुए कहा, "हमारे अध्ययन से पता चला है कि जो लोग अकेले रहते हैं, उनके अवसादग्रस्त होने का अधिक जोखिम है। चाहे पुरुष हों या महिलाएं दोनों में अवसाद से उत्पन्न जोखिम के स्तर में कोई अंतर नही है।"
पुरुषों में अवसाद के बढ़ने के कारकों में कार्यस्थल का खराब वातावरण, कार्यस्थल और निजी जीवन में सहयोग की कमी और भारी मात्रा में मदिरा सेवन शामिल है, जबकि महिलाओं में इसके साथ-साथ सामाजिक जनसांख्यिकीय कारक जैसे शिक्षा की कमी और आय का कम होना भी शामिल है।
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